Monday, March 21, 2011

होली है.!

बस की पांचवी सीट पर गुमसुम बैठी मैं लाल बत्ती को देख रही थी. 
बायें मुड़ी तो सड़क पर खड़े वो अपनी भोली-भाली-सी आँखों से मुझे देखने लगा. 
मैंने देखा. 
उसने देखा. 
इससे पहले कि मैं वापिस मुड़ पाती... उसने अपने दायाँ हाथ उठाया और...
 दे छपाक.! 
गुब्बारे का दर्द क्या होता है, बड़े दिनों बाद पता लगा. 



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