बचपन के दिन याद आये तो एक लाल रंग का गुल्लक घर ले आईI
बड़ी उँगलियों में फंसा मिटटी का गुल्लक अब बहुत छोटा लगता हैI
इंतज़ार है ऊस दिन का जब ज़मीन साफ़ कर, पैसों से भरे गुल्लक को ज़ोर से दे मारना हैI
फ़र्क होगा तो बस उँगलियों के स्पर्श का...
...क्यूंकि अब सिक्के नहीं, दस-दस रूपये के नोट निकलेंगे.
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